Monday, November 12, 2007

नयी सुबह पे नज़र है,
मगर आह! यह भी डर है,
यह सहर भी रफ्ता रफ्ता,
कहीं शाम तक पहुंचे |
-शकील बदायूँनी

Saturday, November 10, 2007

वस्ल में रंग उड़ गया मेरा,
क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा |
-मीर तकी 'मीर'