प्यार किसी को करना लेकिन
कहकर उसे बताना क्या |
अपने को अर्पण करना पर
औरों को अपनाना क्या |
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या |
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या |
ले लेना सुगन्ध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या |
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम-पाश फैलाना क्या |
त्याग अंक में पले प्रेम-शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या |
देकर ह्रदय ह्रदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या|
-डाक्टर हरिवंश राय बच्चन
Saturday, September 29, 2007
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2 comments:
pata nahi kyon lekin...
Bhai keh to tum sahi hi rahe ho, magar yeh bhi ek pehlu hai. Shayad ismein naakaami ki jhalak milti ho, magar yeh nihswaarth bhaav ka roop hai. Humne bhi ise sweekar karne mein samay liya tha. Bahut baad mein samajh pae, ki baat kuchh hadd tak to sahi kahi gai hai.
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