लायी हयात आये कज़ा ले चली चले
ना अपनी ख़ुशी आये ना अपनी ख़ुशी चले |
दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूं ही जब तक चली चले |
कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बदकिमार
जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले |
-"ज़ौक" इब्राहिम
{हयात = जीवन ; कज़ा = मौत ; राहे-फ़ना = नश्वर जीवन की राह ; बदकिमार = बेवकूफ़}
Tuesday, July 31, 2007
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