Tuesday, July 31, 2007

लायी हयात आये कज़ा ले चली चले
ना अपनी ख़ुशी आये ना अपनी ख़ुशी चले |

दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूं ही जब तक चली चले |

कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बदकिमार

जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले |
-"ज़ौक" इब्राहिम
{
हयात = जीवन ; कज़ा = मौत ; राहे-फ़ना = नश्वर जीवन की राह ; बदकिमार = बेवकूफ़}

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