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Kaavya-Sangrah
Sunday, July 8, 2007
एक
सूरज
है
यहाँ
दफ्न
बड़ी
मुद्दत
से
,
मुस्कुराते
हैं
अँधेरे
इधर
आते
-
जाते
|
एक
आँसू
की
भी
खैरात
ना
पाई
मुझसे
,
थक
गए
गम
मेरी
दहलीज़
पे
आते
-
जाते
|
-Anonymous
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"नौशाह हूँ उस कौम का, कहते हें जिसको शायरी,... है आरजू, मुझको खुदा दे इस अदा में माहिरी|||"
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