Tuesday, July 31, 2007

ख़ुदा नहीं, न सही, आदमी का ख़्वाब सही ,
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये |

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये |

-दुष्यंत कुमार

No comments: