Tuesday, July 31, 2007

तुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को आँसुओ ने झेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |


तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचनी कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |

-डाक्टर कुमार विश्वास
{काव्य संग्रह "कोई दीवाना कहता है" (२००७) में प्रकाशित}

3 comments:

Gaurav said...

Every line is so simple yet so deep,

his style is something that has got me from long before, and this composition is as beautiful as it can get.

I really thank you from the bottom of my heart...

bhumika deep bhandari said...

its very touching.....

Vaibhav Bakhshi said...

No wonder Dr Vishwaas has gained a special place in hearts of most of us. Both of you are right. This one is truly awesome.