Friday, May 25, 2007

मैं जीवन में कुछ कर ना सका...

जग मॆं अन्धियारा छाया था
मैं ज्वाला लेकर आया था
मैंने जलकर दी आयु बिता
पर धरती का तम हर ना सका
मैं जीवन मॆं कुछ कर ना सका |||

अपनी ही आग बुझा लेता
तो जी की धैर्य बंधा देता
मधु का सागर लहराता था
लघु प्याला भी मैं भर ना सका
मैं जीवन मॆं कुछ कर ना सका...

बीता अवसर क्या आयेगा
मन जीवन भर पछ्तायेगा
मरना तो होगा ही मुझको
जब मरना था तब मर ना सका
मैं जीवन मॆं कुछ कर ना सका...|||

-हरिवंश राय बच्चन

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