देवों ने था जिसे बनाया,
देवों ने था जिसे बजाया,
मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?
इसने स्वर्ग रिझाना सीखा,
स्वर्गिक तान सुनाना सीखा,
जगती को खुश करनेवाले स्वर से कैसे इसको भर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?
झंकृत हो यह फिर जीवन में?
क्यों न हृदय निर्मम हो कहता
अंगारे अब धर इस पर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?
-हरिवंश राय बच्चन
संकलन : निशा-निमंत्रण (प्रकाशन वर्ष : 1938)
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